Saturday, November 21, 2015

तपस्वी पिता के तेजस्वी पूत

यह कथा है एक जुझारू और तपस्वी मनुष्य की. इस महामानव ने अपने अथक प्रयासों से MY Lord का दर्ज़ा हासिल किया और इसी MY घटक को साध कर राजनीति में कमंडल का 'क' निकाल फेंका.  आप स्वयं परास्नातक उपाधि धारक हैं. पर जनता की सेवा करने में आप इतने लीन हो गए कि लम्बे-चौड़े परिवार पर अधिक ध्यान नहीं दे सके.  गो कि यह जरूर कहना पड़ेगा की पितृऋण से उऋण होने में आपने कोताही नहीं की. आपकी व्यस्तता के चलते आपके दो बड़े पुत्र शिक्षा से लगभग वंचित ही रह गए. भूखे पेट सोने वाली जनता की तकलीफ को खुद अनुभव कर सकें इसके लिए आपने चारा भी खाया.  आपके इस महान कृत्य को दुष्ट विरोधियों ने आपराधिक कृत्य ठहराते हुए आपको न्यायालय में दोषी भी ठहरा दिया.  बात यहीं पर नहीं रुकी.  आप चुनाव लड़ कर जनता की सेवा करते रह सकें ऐसा अध्यादेश कुछ सही दृष्टिकोण वाले मित्रों ने पारित करवाने की चेष्टा की.  पर कुछ अनुभवहीन गरम खून वाले नौजवानों ने इसको फड़वा कर कूड़े में डलवा दिया.  पर इससे वह आपको चुनाव से ही विरत कर पाए, जनसेवा की राजनीति से नहीं.  राजनीति में आप का पैर अंगद के पैर की तरह टिका रह सके इसके लिए आपने नीलकंठ की तरह विष का घूँट भी पी लिया.  इससे प्रभावित हो कर आपके चरम विरोधी भी आपके चरण शरण में आ गए.

आपके इसी अथक प्रयास और जनसेवा की भावना का परिणाम है कि आपके दोनों तेजस्वी पुत्र शिक्षा से वंचित रह जाने पर भी आज उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हो गए हैं और आपके सेवाकार्य को आगे बढ़ा रहे हैं.  इन दोनों का विचार है कि आपके जैसा पिता नसीब वालों ही मिलता है.  आपने विनम्रता (और बिजली की अनुपलब्धता)वश लालटेन को अपना प्रतीक बनाया है.  पर आपके तेज से प्रज्वलित इस लालटेन के तेज के आगे अपने को नसीब वाला मानने वाले भी नतमस्तक हो गए हैं.  हम सभी आपको नमस्कार करते हैं.

द्रवहु हे लालू परम बिहारी.

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