Wednesday, December 20, 2023

पकौड़ी पर एक निबंध

पकौड़ी एक अत्यंत लोकप्रिय व्यंजन है।  यह तल कर भली-भाँति पकाया जाता है। अच्छी पकी होने के कारण इसे पकौड़ी कहा जाता है जैसे भाग जाने वाली महिला को भगोड़ी कहा जाता है।  आकार बड़ा होने पर इसे पकौड़ी के बजाय पकौड़ा कहा जाता है, जैसे बड़े-बड़े क़र्ज़ ले कर भाग जाने वालों को भगोड़ा कहा जाता है।

बेरोज़गारों के लिए पकौड़ी एक सुगम रोज़गार का साधन भी बताया गया है।  इसे पकाने के लिए ठेले को नाले के किनारे खड़ा कर, नाले की गैस को ईंधन की भाँति प्रयोग कर लागत भी सुगमता से घटाई जा सकती है।  यद्यपि होटलों में इसकी क़ीमत सैकड़ों में जा सकती है, पर नाले के किनारे वाले ठेले की आमदनी कौड़ियों में ही हो पाती है।  संभवतया नाम का अंतिम भाग 'कौड़ी' यहीं से आया है।  पकाया और कौड़ी कमाया, क्या है ये भाया, अरे पकौड़ी है भाया, क्या तुमने अभी नहीं खाया?

पकौड़ी खाने का सर्वोत्तम मौसम बादल वाले दिनों (रोज़-ए-अब्र) में होता है।  इन दिनों में आसमान में उड़ रहे और सर्वे कर रहे नेतागण न आप को देख पाते हैं न आप उनको।  कहते हैं कि ऐसे मौसम में इन नेताओं को आप राडार से भी नहीं देख पायेंगे।

दालें, जिसमें चना डाल भी शामिल है जिससे बेसन बनता है, और खाद्य तेलों के दामों में निरंतर बढ़ोतरी के कारण, नाला गैस के प्रयोग के बावजूद बढ़ती क़ीमतों ने इस व्यवसाय को नुक़सान पहुँचाया है।  इससे स्वरोज़गार में आई कमी को दूर करने के लिए सरकार ने अग्निवीर योजना भी लागू की है।  यहाँ पर अग्नि से तात्पर्य आग्नेयास्त्रों से है नाले की गैस की लपट से नहीं।

आप जानते ही हैं कि पकौड़ी किसी भी सब्ज़ी से बनाई जा सकती है और इसे बनाने की विधि बहुत ही सरल है।  जिस भी चीज की पकौड़ी बनानी हो उसे बेसन के घोल में लपेट कर खौलते तेल में तल दिया जाता है।  खौलते तेल में सारे वायरस और बैक्टीरिया मर जाते हैं और इस प्रकार पकौड़ी आयुष्मान भारत योजना में भी सहयोग प्रदान करती है।  बताया जाता है कि एक विशेष प्रकार के मशरुम की पकौड़ी अत्यंत पोषक, स्वास्थ्यवर्धक और ऊर्जा प्रदान करने वाली होती है।  इसे लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार की योजनाओं की प्रतीक्षा है।

इन दिनों संसद के ढेर सारे सदस्यों के निलंबन के कारण वह लोग संसद भवन में नहीं जा पा रहे हैं जिसके कारण संसद की कैंटीन में पकौड़ों की खपत में भारी गिरावट आई है।  आशा है की सांसदगण इस अवसर पर नाले की गैस वाली पकौड़ी का रसास्वादन कर रहे होंगे और नवयुवकों के स्वरोज़गार में मदद कर रहे होंगे।

Sunday, October 22, 2017

बाबूशाला

सचिवालय जाने को घर से चलता है अफसर आला,
आज बजाऊं पुंगी किसी, करूँ कौन सा घोटाला,
जो भी चाहे कर बेखटके मैं उसको समझाता हूँ,
कई युगों तक लोकपाल है नहीं अभी आने वाला.

रूल नियम को घोंट-घांट कर बनवाई मैंने हाला,
प्यारे तेरी फाइल को ही आज बनाऊंगा प्याला,
भोग लगाओ मुझे तभी तो दरवाज़े खुल पायेंगे,
फिर तो भाई स्वयं करेगी स्वागत तेरा मधुशाला.

सिस्टम की अंगूर लता से खींच खजाने की हाला,
रुपए में पचासी पैसा हम साकीजन ने पी डाला,
पंद्रह में पिलवाऊं कैसे एक अरब पीने वाले
उनका रक्त मिला डाला अब लाल हुई मेरी हाला।

बारम्बार चुनावी भट्टी में कितना जीवन, हाय, तपा डाला!
सिस्टम को जो मधुमय कर दे मिली न हमको वह हाला,
NOTA तो रसहीन, बनाऊं उससे क्योंकर मैं हाला,
नकली हाला यहाँ है मिलती असली दूर बहुत मधुशाला.

Monday, April 25, 2016

कुछ कहावतें

कुछ लोग हैं जो काम-धाम छोड़ कर बैठे हैं इंतज़ार में:

  1. कि अच्छे दिन आयेंगे,
  2. कि गरीबी ख़त्म हो जायेगी,
  3. कि काला पैसा वापस आ जाएगा,
  4. कि भारत जगद्गुरु बन जाएगा,
  5. कि पाकिस्तान को औकात समझ में आ जायेगी,
  6. कि चीन को होश आ जाएगा,
  7. कि नेपाल थोड़ा सुधर जाएगा,
  8. कि दाल सस्ती हो जायेगी,
  9. कि आयकर में ठीक-ठाक छूट मिल जायेगी,
  10. कि राजनीति से अपराधी निकल जायेंगे,
  11. कि सरकारी कार्यालयों में सेवा -शुल्क समाप्त हो जाएगा,
  12. कि सरकारी अस्पताल और स्कूल ठीक से चलने लगेंगे, इत्यादि, इत्यादि....
ऐसे लोगों के लिए कुछ कहावतें / गीत प्रस्तुत हैं:
  • कबिरा धीरज के धरे हाथी मन भर खाय, टूक एक के कारने श्वान घरे-घर जाय.  अतएव धैर्य बनाए रखें.
  • जल्दी का काम शैतान का.  आपके नेता शैतान तो हैं नहीं!
  • सब्र का फल मीठा होता है. सब्र रखो मियाँ.
  • होईहै सोई जो राम रचि राखा.  हमारे तुम्हारे चाहने से क्या होता है?
  • दिल-ए-बेकरार का मज़ा लीजिये, थोड़ा इंतज़ार का मज़ा लीजिये.
ग़ालिब ने भी कहा है कि हजारों ख्वाहिशें ऐसी...  उन्होंने यह भी कहा है की वादों पर ऐतबार खतरनाक साबित हो सकता है. ....कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता.

तो मित्रों अगले चुनाव तक इंतज़ार करो. हम फिर आयेंगे. नए जुमलों के साथ.

Monday, March 14, 2016

Why Interrogate Bankers Alone?

By now the number of times the name Mallya has been spoken or written must be running into millions.  It is there in the media - print, electronic and social - as well as serious debating platforms like the parliament.

The name appears in conjunction with banks, previous Congress government (CG) and the current BJP government (BG.)  Though I have not carried out a statistical analysis myself, I suspect that if you were to do so, you will find the number of times it is associated with CG or BG exceeds the number of times it is associated with banks.  In the debate in the parliament, charges were traded between Congress and BJP as to who was in power at those points in time when the loan was sanctioned, renewed and finally the borrower allowed to flee.

Neither CG nor BG tried to make a point that banks are autonomous and the government does not try to influence their commercial decisions.  I wonder if this tantamount to a confession by both of the top two political parties of India.  And if it is so two questions arise.  Does it seem likely that anyone in IDBI or any other bank could demand a gratification if a directive was received from the party in power?  And the second, why is ED not calling FM officials too for questioning?

Banker friends may like to comment on this.

Tuesday, March 8, 2016

मुर्ग़ा द्विभाषिक

एक शर्मिंदा मुर्ग़ा 

सुना कि अंडा है unfertilized,
बेहद hurt है मुर्ग़े का pride,
सोचा खा ले cyanamide,
आख़िर कैसे टर्न हो tide,
फिर कुछ उसने सोचा रुक कर,
अब करता है टाइम bide.

मुर्ग़े को फ़्राइट

मुर्ग़े की है हुलिया tight,
उसको है स्टेज का fright,
उसको आया है invite,
स्टूडीओ में है बिग fight

Saturday, November 21, 2015

तपस्वी पिता के तेजस्वी पूत

यह कथा है एक जुझारू और तपस्वी मनुष्य की. इस महामानव ने अपने अथक प्रयासों से MY Lord का दर्ज़ा हासिल किया और इसी MY घटक को साध कर राजनीति में कमंडल का 'क' निकाल फेंका.  आप स्वयं परास्नातक उपाधि धारक हैं. पर जनता की सेवा करने में आप इतने लीन हो गए कि लम्बे-चौड़े परिवार पर अधिक ध्यान नहीं दे सके.  गो कि यह जरूर कहना पड़ेगा की पितृऋण से उऋण होने में आपने कोताही नहीं की. आपकी व्यस्तता के चलते आपके दो बड़े पुत्र शिक्षा से लगभग वंचित ही रह गए. भूखे पेट सोने वाली जनता की तकलीफ को खुद अनुभव कर सकें इसके लिए आपने चारा भी खाया.  आपके इस महान कृत्य को दुष्ट विरोधियों ने आपराधिक कृत्य ठहराते हुए आपको न्यायालय में दोषी भी ठहरा दिया.  बात यहीं पर नहीं रुकी.  आप चुनाव लड़ कर जनता की सेवा करते रह सकें ऐसा अध्यादेश कुछ सही दृष्टिकोण वाले मित्रों ने पारित करवाने की चेष्टा की.  पर कुछ अनुभवहीन गरम खून वाले नौजवानों ने इसको फड़वा कर कूड़े में डलवा दिया.  पर इससे वह आपको चुनाव से ही विरत कर पाए, जनसेवा की राजनीति से नहीं.  राजनीति में आप का पैर अंगद के पैर की तरह टिका रह सके इसके लिए आपने नीलकंठ की तरह विष का घूँट भी पी लिया.  इससे प्रभावित हो कर आपके चरम विरोधी भी आपके चरण शरण में आ गए.

आपके इसी अथक प्रयास और जनसेवा की भावना का परिणाम है कि आपके दोनों तेजस्वी पुत्र शिक्षा से वंचित रह जाने पर भी आज उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हो गए हैं और आपके सेवाकार्य को आगे बढ़ा रहे हैं.  इन दोनों का विचार है कि आपके जैसा पिता नसीब वालों ही मिलता है.  आपने विनम्रता (और बिजली की अनुपलब्धता)वश लालटेन को अपना प्रतीक बनाया है.  पर आपके तेज से प्रज्वलित इस लालटेन के तेज के आगे अपने को नसीब वाला मानने वाले भी नतमस्तक हो गए हैं.  हम सभी आपको नमस्कार करते हैं.

द्रवहु हे लालू परम बिहारी.

Monday, November 2, 2015

गुमशुदा की तलाश: विकास तुम कहाँ हो?

प्यारे विकास, तुम्हारा इंतज़ार कर के आँखें पथरा गई हैं, आ जाओ अब और कितना इंतज़ार करवाओगे? सुना है तुमको विदेशों में रहने की लत लग गई है। हम में से कुछ लोग तुम्हें ढूँढने विदेश गए थे। अभी भी जाते रहते हैं। कइयों का कहना है वहाँ तुम सभी जगह दिखते हो और यह लोग वहीं तुम्हारे पास ही रह गए हैं। कुछ लौट आए हैं, कहते हैं कि वहाँ तुम नहीं हो तुम्हारा हमशकल विदेशी है। हमारे राजनेता बड़े भले लोग हैं। विदेशी विकास को देखने जाते हैं पर उसके झाँसे में नहीं आते। कहते हैं हमारा अपना देसी विकास आएगा। पर तुम बेदर्द हो, आते ही नहीं। अब तो तुम बूढ़े भी हो चले होगे। पर क्या पता? तुम्हारे दर्शन करके आने वाले नेता तो तुम्हारी दुगुनी उमर तक जवान बने रहते हैं।

लेकिन बचुआ अब तुम आ ही जाओ। दिल्ली हो चाहे बिहार या फिर चाहे UP, तुम्हारा फ़ोटू दिखा कर सब हमको ठग रहे है, देश का खजाना लूट रहे हैं। आ जाओ हम तुमको विश्वास दिलाते हैं कि भाजपा, कांग्रेस, आप सबसे तुम्हें बचाएँगे।  कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। आ जाओ हम कहीं तुमसे मिले बिना ही वापस न हो जाएँ।

नोट: विकास का हुलिया तो नेता लोग आधी शताब्दी से बता ही रहे हैं। लाने वाले को हम भारत के लोग इनाम में हर कुर्सी देने को तैयार हैं। हमें विकास से इतना लगाव है कि लोगों ने उसे लाने के वादे पर ही कुर्सी हमसे हासिल कर ली है।