Sunday, October 22, 2017

बाबूशाला

सचिवालय जाने को घर से चलता है अफसर आला,
आज बजाऊं पुंगी किसी, करूँ कौन सा घोटाला,
जो भी चाहे कर बेखटके मैं उसको समझाता हूँ,
कई युगों तक लोकपाल है नहीं अभी आने वाला.

रूल नियम को घोंट-घांट कर बनवाई मैंने हाला,
प्यारे तेरी फाइल को ही आज बनाऊंगा प्याला,
भोग लगाओ मुझे तभी तो दरवाज़े खुल पायेंगे,
फिर तो भाई स्वयं करेगी स्वागत तेरा मधुशाला.

सिस्टम की अंगूर लता से खींच खजाने की हाला,
रुपए में पचासी पैसा हम साकीजन ने पी डाला,
पंद्रह में पिलवाऊं कैसे एक अरब पीने वाले
उनका रक्त मिला डाला अब लाल हुई मेरी हाला।

बारम्बार चुनावी भट्टी में कितना जीवन, हाय, तपा डाला!
सिस्टम को जो मधुमय कर दे मिली न हमको वह हाला,
NOTA तो रसहीन, बनाऊं उससे क्योंकर मैं हाला,
नकली हाला यहाँ है मिलती असली दूर बहुत मधुशाला.

No comments:

Post a Comment